सोचती हूँ मैं
हसीं लम्हों में छिपे रंग ढूंढ्ती हूँ मैं
अपनी मुट्ठी मैं क़ैद करने का सोचती हूँ मैं!
नभ में खीले तारों को निहारती हूँ मैं
अपनी माला में पिरोने को सोचती हूँ मैं!
पत्थरों में अपने ईश्वर को खोजती हूं मैं,
मेरे श्याम फिर बंसी बजाये सोचती हूं मैं!
सूरज को सागर में लीन होने से रोकती हूँ मैं,
हाँ यही सोचती हूँ मैं!
बस यही सोचती हूँ मैं!
अपनी मुट्ठी मैं क़ैद करने का सोचती हूँ मैं!
नभ में खीले तारों को निहारती हूँ मैं
अपनी माला में पिरोने को सोचती हूँ मैं!
पत्थरों में अपने ईश्वर को खोजती हूं मैं,
मेरे श्याम फिर बंसी बजाये सोचती हूं मैं!
सूरज को सागर में लीन होने से रोकती हूँ मैं,
हाँ यही सोचती हूँ मैं!
बस यही सोचती हूँ मैं!
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