मोड़

रात की कम्बल ओढ़े
दर्द की संगिनी मिली थी मुझे
उसकी आहट ने मायूसी का दामन थामा था
कुछ कदम जब हम दोनो ने साथ तय किये,
मैंने उसके मन कि तह को टटोला
जब उसमें कहीँ खुद को झांकता देखा मैंने,
तब पाया के अकस्मात एक मोड़ आया है
वहाँ से मुझे अकेले आगे जाना था,
क्योंकी उस अँधेरे की दुल्हन को तो
वहीँ ,
रात का साथ निभाना था!

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